सत्यवादी राजा और झूठा मंत्री ( The truthful king and the false minister ) hindi motivational short story
The truthful king and the false minister hindi motivational short story – बहुत समय पहले की बात है, एक राज्य था जिसका नाम आनंदपुर था। इस राज्य के राजा सत्यप्रिय अपने न्याय और सत्यनिष्ठा के लिए पूरे राज्य में विख्यात थे। उनकी प्रजा उन्हें बहुत सम्मान और प्रेम करती थी। राजा सत्यप्रिय ने अपने राज्य में सुख-शांति और समृद्धि कायम रखी थी। उनके दरबार में अनेक मंत्री थे, जिनमें से एक मंत्री कुटिलमनस भी था। कुटिलमनस राजा से ईर्ष्या करता था और हमेशा राजा को बदनाम करने की साजिश रचता रहता था।
कुटिलमनस सोचता था, “राजा सत्यप्रिय का इतना सम्मान क्यों हो? यदि मैं राजा को बदनाम कर दूं, तो शायद मुझे भी कुछ लाभ मिल सके।” उसने योजना बनाई और राजा के खिलाफ झूठी अफवाहें फैलानी शुरू कर दीं। उसने धीरे-धीरे लोगों के बीच यह बात फैलानी शुरू की कि राजा अब सत्यवादी नहीं रहा और वह भ्रष्ट हो गया है।
कुछ समय बाद, लोगों के बीच इन अफवाहों ने जोर पकड़ लिया। लोग राजा के बारे में तरह-तरह की बातें करने लगे। वे कहने लगे, “हमारा राजा अब सत्यप्रिय नहीं रहा, वह भी अब भ्रष्ट हो गया है।”
राजा सत्यप्रिय ने यह सुना और उसे बहुत दुख हुआ। उन्होंने सोचा, “मैंने हमेशा सत्य का पालन किया है और न्यायप्रियता का आदान-प्रदान किया है। यह कैसे हो सकता है कि लोग मेरे बारे में ऐसी बातें कर रहे हैं?” उन्होंने निर्णय लिया कि इस मुद्दे को साफ करने के लिए एक सभा बुलानी चाहिए।
राजा ने अपने दरबार में सभी लोगों को बुलाया और घोषणा की, “सभी सम्मानित नागरिकों, मैंने सुना है कि मेरे बारे में कुछ झूठी अफवाहें फैलाई जा रही हैं। यदि किसी को मुझ पर संदेह है, तो कृपया सामने आएं और अपने सवाल पूछें। मैं आपके सभी सवालों का उत्तर दूंगा और सच्चाई को सामने लाऊंगा।”
सभा में सन्नाटा छा गया। किसी ने कुछ नहीं कहा। तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति खड़ा हुआ और बोला, “महाराज, हम सुन रहे हैं कि आप अब सत्यवादी नहीं रहे। क्या यह सच है?”
राजा ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “यह सिर्फ एक अफवाह है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने हमेशा सत्य का पालन किया है और न्याय किया है। यदि आपको मुझ पर संदेह है, तो मैं किसी भी प्रकार की परीक्षा देने के लिए तैयार हूँ।”
राजा ने अपने राज्य के सभी वरिष्ठ नागरिकों को बुलाया और उनसे पूछा, “क्या आपने कभी मुझे झूठ बोलते हुए देखा है या किसी अन्याय करते हुए देखा है?”
सभी वरिष्ठ नागरिकों ने एकसुर में कहा, “नहीं महाराज, आपने हमेशा सत्य का पालन किया है और न्याय किया है। हम आपके सत्यवादिता और न्यायप्रियता की गवाही देते हैं।”
तभी कुटिलमनस का सच सामने आया। सभा में एक व्यक्ति ने कहा, “महाराज, मैंने सुना है कि यह सभी झूठी अफवाहें मंत्री कुटिलमनस ने फैलाई हैं।”
राजा सत्यप्रिय ने कुटिलमनस को बुलाया और उससे पूछा, “कुटिलमनस, क्या यह सच है? क्या तुमने मेरे खिलाफ यह झूठी अफवाहें फैलाई हैं?”
कुटिलमनस डर गया और उसने स्वीकार किया, “हाँ महाराज, यह सच है। मैंने ही आपके खिलाफ यह झूठी अफवाहें फैलाई थीं। मैं आपसे ईर्ष्या करता था और चाहता था कि लोग आपके बारे में बुरा सोचें।”
राजा सत्यप्रिय ने कहा, “तुम्हारा अपराध बहुत गंभीर है, कुटिलमनस। तुमने न केवल मुझे बदनाम करने की कोशिश की, बल्कि पूरे राज्य में अविश्वास का माहौल पैदा किया। तुम्हें इसकी सजा मिलनी चाहिए।”
राजा ने कुटिलमनस को राज्य से निर्वासित कर दिया और उसकी संपत्ति को जब्त कर लिया। इसके बाद, राजा ने अपने राज्य में एक नई नीति बनाई कि जो भी व्यक्ति झूठी अफवाहें फैलाएगा, उसे कठोर सजा दी जाएगी।
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कहानी की सिख
इस प्रकार, राजा सत्यप्रिय की सत्यवादिता और न्यायप्रियता की विजय हुई और राज्य में फिर से सुख-शांति और समृद्धि कायम हो गई। प्रजा ने फिर से राजा पर अपना विश्वास जताया और राजा सत्यप्रिय ने अपनी सत्य और न्याय की नीति को और भी सख्ती से पालन किया।