400+ Short Story In Hindi With Moral For Kids – बच्चों को कहानियाँ बहुत पसंद होती है. क्योंकि इन कहानियो से उनका भरपूर मनोरंजन भी होता है. और उन्हें नैतिक शिक्षा भी मिलती है. जिससे उनको आगे बढ़ने मे मदद मिलती है. जिससे आगे चलकर वो एक समझदार इंसान बन पाते है.
बिल्ली और बन्दर की कहानी – Short Story In Hindi With Moral For Kids
बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में एक बिल्ली और बंदर रहते थे। बिल्ली बहुत चतुर थी और अपना खाना खुद ढूंढ लेती थी। बंदर थोड़ा आलसी था, लेकिन उसे दूसरों के काम में दखल देना अच्छा लगता था। वह हमेशा बिल्ली से कहता, “तुम इतना मेहनत क्यों करती हो? तुम्हें भी आराम करना चाहिए।”
एक दिन बिल्ली ने जंगल में एक बड़ा सा पेड़ देखा, जिसमें बहुत सारे फल लगे थे। बिल्ली ने सोचा कि यह पेड़ उसके भविष्य के लिए अच्छा हो सकता है, तो उसने वह पेड़ बंदर के साथ बाँटने का विचार किया। उसने बंदर को बुलाया और कहा, “मुझे इस पेड़ के फलों में से कुछ जमा करने चाहिए ताकि बुरे समय में काम आ सकें। क्या तुम मेरी मदद करोगे?”
बंदर ने सोचा कि अगर वह मदद करेगा, तो उसे भी बिना मेहनत के कुछ फल मिल जाएंगे। इसलिए उसने हां कर दी और दोनों मिलकर पेड़ के नीचे पहुंचे। वहां पहुंचकर बंदर ने कहा, “तुम्हें मेरी मदद की जरूरत नहीं है, मैं तो तुम्हें बस निर्देश दूंगा। तुम फल तोड़ो, और मैं देखूँगा कि कैसे जमा करना है।”
बिल्ली ने बंदर की बात मान ली और पेड़ पर चढ़कर फलों को तोड़ना शुरू कर दिया। बंदर नीचे आराम से बैठकर देखता रहा और हर बार कोई फल गिरता, वह उसे अपने पास रख लेता। धीरे-धीरे उसने लगभग सारे फल अपने पास जमा कर लिए और बिल्ली को एक भी फल नहीं दिया।
जब बिल्ली पेड़ से नीचे उतरी, तो उसने देखा कि सारे फल बंदर के पास हैं। उसने कहा, “ये तो मैंने मेहनत से तोड़े थे, ये फल मुझे भी मिलने चाहिए।” बंदर ने चालाकी से जवाब दिया, “तुमने तो सिर्फ तोड़े हैं, पर असल मेहनत तो मेरी है कि मैंने इन्हें सही से रखा है।”
बिल्ली समझ गई कि बंदर उसे धोखा दे रहा है, लेकिन उसने सोचा कि इसे सबक सिखाना चाहिए। अगले दिन बिल्ली ने बंदर से कहा, “मैंने सुना है कि इस जंगल के दूसरी तरफ एक बहुत ही स्वादिष्ट फल का पेड़ है। क्यों न हम वहां चलें और साथ में फलों का भंडार करें?”
बंदर लालची था, उसने तुरंत मान लिया। दोनों जंगल के दूसरी तरफ गए, और जैसे ही बंदर ने फल तोड़ना शुरू किया, बिल्ली ने एकदम से पेड़ की ओर उछलकर उसकी पूंछ पकड़ ली। इससे बंदर इतना डर गया कि उसने सारे फल छोड़ दिए और भाग गया।
बिल्ली ने मुस्कुराते हुए सारे फलों को अपने पास जमा किया और खुशी-खुशी अपने घर चली आई। इस तरह बिल्ली ने अपनी मेहनत से प्राप्त चीजों को धोखेबाज बंदर से बचा लिया और यह भी सीख दी कि मेहनत करने वाले को ही असली फल मिलता है।
मगरमच्छ और बंदर की कहानी – Moral Story ln Hindi
एक बार की बात है, एक गहरे जंगल में एक बन्दर और एक मगरमच्छ रहते थे। दोनों का घर नदी के दोनों किनारों पर था। बन्दर एक ऊँचे पेड़ पर रहता था, और वहीं से उसे नदी का पूरा दृश्य दिखता था। वह हर दिन उस पेड़ के रसीले फलों का आनंद लेता था।
मगरमच्छ नदी के दूसरी तरफ रहता था, और उसका भोजन आमतौर पर मछलियाँ हुआ करती थीं। एक दिन, मगरमच्छ ने बन्दर को पेड़ पर फल खाते हुए देखा और उससे दोस्ती करने की सोची। वह धीरे-धीरे नदी के किनारे पहुंचा और बन्दर से कहा, “तुम्हारे पास ये कितने रसीले फल हैं! क्या तुम मुझे भी कुछ दे सकते हो?”
बन्दर, जो दिल का बहुत अच्छा था, ने तुरन्त एक-दो फल तोड़कर मगरमच्छ की ओर फेंक दिए। मगरमच्छ ने फलों का स्वाद लिया और बहुत खुश हुआ। अब यह रोज़ का सिलसिला बन गया—मगरमच्छ आता, और बन्दर उसे फल दे देता। धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो गई और वे रोज़ बातें करने लगे।
एक दिन मगरमच्छ ने घर लौट कर अपनी पत्नी को फलों का स्वाद चखाया। पत्नी को फल बहुत पसंद आया, परंतु उसके मन में एक अजीब इच्छा जाग गई। उसने कहा, “अगर फल इतने मीठे हैं, तो सोचो बन्दर का दिल कितना मीठा होगा। मुझे वह दिल चाहिए!”
मगरमच्छ दुविधा में पड़ गया। उसे अपनी पत्नी से बहुत प्यार था, लेकिन वह बन्दर को धोखा भी नहीं देना चाहता था। परंतु पत्नी के दबाव में उसने बन्दर को धोखा देने की योजना बनाई। अगले दिन उसने बन्दर से कहा, “बन्दर भाई, नदी के दूसरी तरफ एक जगह है जहाँ फल और भी अधिक रसीले हैं। क्या तुम मेरे साथ चलोगे?”
बन्दर खुश हुआ और उसने बिना कुछ सोचे-समझे मगरमच्छ की पीठ पर बैठना स्वीकार कर लिया। मगरमच्छ ने उसे नदी के बीच ले जाकर धीरे-धीरे अपनी पत्नी की बात बताई। उसने कहा, “मुझे माफ करना, लेकिन मेरी पत्नी को तुम्हारा दिल चाहिए।”
बन्दर यह सुनकर चौंक गया, लेकिन उसने अपनी चतुराई से जवाब दिया, “अरे मगरमच्छ भाई, तुमने पहले क्यों नहीं बताया? मैं अपना दिल पेड़ पर छोड़कर आया हूँ। अगर तुम मुझे वापस ले चलो तो मैं दिल ला सकता हूँ।”
मगरमच्छ बन्दर की बातों में आ गया और उसे वापस पेड़ के पास ले आया। पेड़ पर पहुंचते ही बन्दर तुरन्त छलांग मारकर अपने ऊँचे ठिकाने पर चढ़ गया और बोला, “अरे मूर्ख मगरमच्छ, दिल क्या कोई पेड़ पर छोड़कर आता है? तुम्हारी लालच ने हमारी दोस्ती को धोखा दिया। अब जाओ और अपनी पत्नी को बता दो कि उसे बन्दर का दिल नहीं मिलेगा।”
मगरमच्छ ने अपनी गलती को महसूस किया और शर्मिंदा होकर वापस लौट गया। उसने समझा कि लालच में पड़कर सच्चे दोस्त को धोखा नहीं देना चाहिए। फिर भी, उसने उस दिन से सबक लिया और कभी भी किसी से धोखा नहीं किया।
इस तरह, बन्दर अपनी समझदारी से अपनी जान बचा लेता है और मगरमच्छ को एक ज़रूरी सीख मिलती है।
मूर्ख गधा और चालाक लोमड़ी – Moral Story Hindi Kahani
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में एक मूर्ख गधा और चालाक लोमड़ी रहते थे। गधा हमेशा खुद को बहुत समझदार समझता था, लेकिन वह असल में बहुत भोला था और किसी भी चीज़ को अच्छे से नहीं समझ पाता था। वहीं लोमड़ी चालाक और समझदार थी, और अपनी चतुराई से अपने काम निकालना जानती थी।
एक दिन दोनों जंगल में घूम रहे थे, तभी उनकी नजर एक बगीचे पर पड़ी जहाँ बहुत सारे पके हुए फल और सब्जियां थीं। गधा उन फलों और सब्जियों को देखकर ललचा गया और उसने लोमड़ी से कहा, “चलो, हम इस बगीचे में घुस जाते हैं और खूब पेट भरकर खाते हैं।”
लोमड़ी ने बगीचे के चारों ओर देखा और बोली, “यहाँ तो एक किसान भी है जो हमें देख सकता है। यह अच्छा नहीं होगा कि हम सीधे बगीचे में जाएं। इसके बजाय हमें कोई चालाकी दिखानी चाहिए ताकि बिना पकड़े हुए ही हम अपना काम कर सकें।”
गधे ने लोमड़ी की बात को नजरअंदाज किया और सीधे बगीचे में घुस गया। किसान ने गधे को देखकर जोर से शोर मचाया, और उसे दौड़ाते हुए पकड़ लिया। गधा बुरी तरह डर गया और समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या करना चाहिए। किसान ने उसे बाँध दिया और उसकी खूब पिटाई की। गधा रोने लगा और सोचने लगा कि लोमड़ी की बात मान लेनी चाहिए थी।
दूसरी ओर, चालाक लोमड़ी ने बगीचे के पास एक और रास्ता ढूंढा, जिससे उसे बिना पकड़े हुए बगीचे में घुसने का मौका मिल गया। उसने भरपेट फल और सब्जियां खाईं और चुपचाप निकल गई। जब वह बाहर आई, तो उसने गधे को बंधे हुए और दुखी देखा।
लोमड़ी ने हँसते हुए कहा, “मैंने तुमसे कहा था कि हमें सोच-समझकर काम करना चाहिए। चतुराई से ही हमें अपने काम में सफलता मिलती है। अगर तुमने मेरी बात मानी होती, तो आज इस हालत में न होते।”
गधा बहुत शर्मिंदा हुआ और समझ गया कि बिना सोचे-समझे किसी काम में हाथ डालना मूर्खता होती है। उस दिन से गधा लोमड़ी की बातें ध्यान से सुनने लगा और उससे कुछ सीखने की कोशिश करने लगा।
कहानी से सीख: बुद्धिमानी से किया गया काम हमेशा सही परिणाम देता है, जबकि मूर्खता और जल्दबाजी नुकसान ही पहुँचाती है।
मजबूर आदमी और कंजूस सेठ – Moral kahani ln Hindi
किसी गाँव में एक बहुत ही कंजूस सेठ रहता था। उसका नाम सेठ धनीराम था। सेठ धनीराम को अपने धन से बेहद प्रेम था, लेकिन वह अपने धन का उपयोग दूसरों की मदद करने में बिल्कुल नहीं करता था। उसे हर समय बस यही लगता था कि उसका धन और बढ़ता जाए।
गाँव के लोग उसकी कंजूसी से परेशान रहते थे। लोग जानते थे कि सेठ के पास बहुत धन है, लेकिन यदि कोई गरीब उससे मदद माँगने जाए तो वह उन्हें खाली हाथ लौटा देता था। सेठ का एक सेवक था, जिसका नाम मोहन था। मोहन बहुत ही ईमानदार, मेहनती और गरीब आदमी था। उसके पास इतना पैसा नहीं था कि वह अपनी और अपने परिवार की सभी जरूरतें पूरी कर सके, परन्तु फिर भी वह सेठ के यहाँ काम करने जाता था ताकि कुछ पैसे कमा सके और अपने परिवार का पेट भर सके।
एक दिन मोहन की पत्नी बीमार हो गई। घर में खाने के लिए भी कुछ नहीं था और इलाज के लिए पैसे तो बहुत दूर की बात थी। मजबूर होकर मोहन सेठ धनीराम के पास मदद माँगने गया। उसने हाथ जोड़कर कहा, “सेठ जी, मेरी पत्नी बहुत बीमार है। उसके इलाज के लिए मुझे कुछ पैसे की जरूरत है। अगर आप कुछ सहायता कर दें तो मेरी जान बच जाएगी।”
सेठ धनीराम ने उसकी ओर देखा और बिना भाव के कहा, “मोहन, मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि काम के अलावा मैं और किसी बात में तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। यहाँ पर मेहनत करो और जितना कमा सकते हो, कमाओ। परन्तु उधार या सहायता के लिए मेरे पास मत आना।”
मोहन को बहुत बुरा लगा, लेकिन उसके पास कोई और चारा नहीं था। वह मायूस होकर अपने घर लौट आया। कुछ दिन बीत गए, लेकिन उसकी पत्नी की तबियत बिगड़ती ही चली गई। मोहन ने कई लोगों से उधार माँगने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उसे इतनी बड़ी रकम उधार देने को तैयार नहीं था। एक दिन उसकी पत्नी ने अंतिम सांस ली, और मोहन पूरी तरह टूट गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यों हुआ।
उस दिन से मोहन के दिल में सेठ धनीराम के प्रति घृणा भर गई। उसने सोचा कि वह अपना सब कुछ खो चुका है और अब उसे किसी चीज़ का डर नहीं है। तभी एक रात, उसने सेठ धनीराम के यहाँ से कुछ चुराने का निश्चय किया ताकि उसके पास कुछ पैसे तो आ सकें और वह अपनी जिंदगी फिर से शुरू कर सके।
मोहन ने एक रात सेठ के घर में सेंध लगाई और कुछ पैसे चुराने की कोशिश की। तभी उसे सेठ ने पकड़ लिया। सेठ धनीराम ने तुरंत उसे पुलिस के हवाले कर दिया। जब पुलिस मोहन को ले जा रही थी, तो मोहन ने कहा, “सेठ जी, अगर आपने थोड़ी सी सहायता की होती, तो शायद आज मैं यह गलत कदम नहीं उठाता। मेरी मजबूरी मुझे यहाँ तक ले आई, लेकिन आप जैसे अमीर होकर भी इंसान की मदद करने का जज्बा नहीं रखते। धन का घमंड आपको कहीं नहीं ले जाएगा।”
सेठ को मोहन की बातों ने सोचने पर मजबूर कर दिया। पुलिस ने मोहन को जेल में डाल दिया, लेकिन सेठ धनीराम के दिल में मोहन की बातें घर कर गईं। कुछ दिनों बाद सेठ ने मोहन की जमानत करवाई और उसे जेल से बाहर निकाला। उसने मोहन से माफी माँगी और उसे आर्थिक मदद देने का वादा किया।
इस घटना के बाद सेठ धनीराम का दिल बदल गया। उसने समझा कि धन का सही उपयोग लोगों की मदद में ही है। उसने गाँव के जरूरतमंद लोगों की मदद करनी शुरू कर दी और अपने धन का सही उपयोग करना सीखा। मोहन और सेठ दोनों की जिंदगी में इस घटना ने नया मोड़ ला दिया।
यह कहानी सिखाती है कि धन का संग्रह करने का कोई महत्व नहीं है यदि उसे सही उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाए। धन का सही उपयोग तभी है जब उससे दूसरों की मदद की जा सके और समाज के विकास में योगदान दिया जा सके।
चालाक खरगोश की कहानी – Hindi Kahani
बहुत समय पहले की बात है, एक हरे-भरे जंगल में एक बहुत चालाक खरगोश रहता था। जंगल के सारे जानवर उसकी तेज बुद्धि और चालाकी के किस्से सुनते रहते थे। वह हमेशा अपने छोटे कद और तेज दिमाग से बड़ी-बड़ी मुसीबतों से खुद को निकाल लेता था।
उस जंगल में एक बहुत बड़ा और ताकतवर शेर भी रहता था। शेर खुद को जंगल का राजा मानता था और किसी से डरता नहीं था। वह जानवरों को डराता-धमकाता और जब मन होता, तब शिकार कर लेता। एक दिन शेर ने एलान किया कि वह हर दिन एक जानवर का शिकार करेगा, ताकि उसे शिकार करने के लिए ज्यादा मेहनत न करनी पड़े। यह सुनकर जंगल के सारे जानवर बहुत डर गए।
जंगल के सारे जानवर मिलकर शेर के पास गए और उसे निवेदन किया, “हे जंगल के राजा! अगर आप हर दिन एक जानवर को खा लेंगे, तो हम चैन से रह सकेंगे। कृपया हमारी विनती स्वीकार करें।” शेर ने जानवरों की बात मान ली, लेकिन शर्त रखी कि उसे हर दिन समय पर एक जानवर दिया जाएगा।
अब हर दिन जंगल के जानवरों में से एक को शेर का शिकार बनना पड़ता। धीरे-धीरे जानवरों की संख्या कम होने लगी, और जंगल में डर का माहौल छा गया। एक दिन बारी आई उस चालाक खरगोश की। सबने सोचा कि अब उसका आखिरी दिन है, लेकिन खरगोश तो बहुत चालाक था। उसने एक योजना बनाई और उसे ध्यान से अमल में लाने का फैसला किया।
खरगोश धीरे-धीरे शेर के पास जाने लगा, ताकि उसे वहां पहुंचने में देर हो जाए। शेर गुस्से में था, क्योंकि उसका भोजन अब तक नहीं पहुंचा था। जैसे ही खरगोश वहां पहुंचा, शेर गरज कर बोला, “तुम इतनी देर से क्यों आए? तुम्हारी इस गलती की सजा मैं तुम्हें अभी दूंगा।”
खरगोश ने डरने का नाटक करते हुए कहा, “महाराज, मैं समय पर ही आ रहा था, लेकिन रास्ते में एक दूसरा शेर आ गया। उसने मुझे रोक लिया और कहा कि वह इस जंगल का असली राजा है और मैं उसी का भोजन बनूंगा।”
शेर को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने कहा, “कहां है वह दुस्साहसी शेर? मुझे ले चलो उसके पास। मैं उसे दिखाता हूं कि असली राजा कौन है।” चालाक खरगोश शेर को एक बड़े कुएं के पास ले गया और बोला, “महाराज, वह शेर इसी कुएं के अंदर है। उसने मुझे यहां रोक लिया था।”
शेर ने कुएं में झांककर देखा, तो उसे अपनी ही परछाई पानी में दिखाई दी। उसने सोचा कि सचमुच एक और शेर वहां है। गुस्से में आकर शेर ने जोर से दहाड़ लगाई, तो उसकी आवाज गूंज कर वापस आई। उसे लगा कि दूसरा शेर भी उसे ललकार रहा है। अब शेर अपने गुस्से को रोक न सका और कुएं में कूद पड़ा। कुएं में पानी गहरा था, और शेर तैरना नहीं जानता था, इसलिए वह डूब गया।
इस तरह उस चालाक खरगोश ने अपनी बुद्धिमानी और साहस से जंगल को शेर के आतंक से मुक्त कर दिया। सारे जानवर खुश होकर खरगोश की जय-जयकार करने लगे।
उस दिन से जंगल में सभी जानवर सुख और शांति से रहने लगे और खरगोश की चतुराई की कहानियाँ दूर-दूर तक मशहूर हो गईं।
लोमड़ी और बन्दर की सच्ची दोस्ती
एक जंगल में एक लोमड़ी और बंदर रहते थे। दोनों में गहरी दोस्ती थी और हमेशा साथ में समय बिताते थे। लोमड़ी चालाक थी और बंदर समझदार। दोनों एक-दूसरे का साथ निभाते और हर मुश्किल में एक-दूसरे की मदद करते थे।
एक दिन जंगल में सूखा पड़ गया। नदियां और झरने सूख गए और जंगल के सारे जीव-जंतु परेशान हो गए। लोमड़ी और बंदर भी पानी की तलाश में थे। कई दिनों तक खोजने के बाद भी उन्हें कहीं भी पानी नहीं मिला। थक हार कर दोनों ने सोचा कि जंगल के सबसे ऊंचे टीले पर जाकर देखना चाहिए, शायद वहां से उन्हें कोई नदी या झील दिखे।
दोनों टीले पर चढ़ गए और वहां से उन्होंने दूर एक झील देखी। वे खुशी से उछल पड़े और तुरंत उस झील की ओर बढ़ गए। लेकिन जैसे ही वे झील के पास पहुंचे, उन्होंने देखा कि झील के चारों ओर बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ और कांटेदार पेड़ हैं। वहां तक पहुंचना बहुत मुश्किल था।
लोमड़ी ने अपनी चालाकी से रास्ता खोजने की सोची और धीरे-धीरे झाड़ियों के बीच से रास्ता बनाने लगी। बंदर भी उसकी मदद करने लगा। थोड़ी मेहनत के बाद आखिरकार दोनों झील तक पहुंच गए। दोनों ने जी भर कर पानी पिया और बहुत राहत महसूस की।
पानी पीकर दोनों एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे। तभी बंदर ने सोचा, “हमारा तो पेट भर गया, लेकिन हमारे बाकी दोस्त भूख-प्यास से तड़प रहे हैं। हमें उनकी मदद करनी चाहिए।” लोमड़ी ने भी उसकी बात का समर्थन किया और कहा, “तुम सही कह रहे हो। चलो, हम सबको यहां तक लाने का उपाय करते हैं।”
बंदर ने एक तरकीब सोची। उसने जंगल में जाकर सारे जानवरों को बुलाया और कहा कि झील तक जाने के लिए एक सुरक्षित रास्ता तैयार हो गया है। सारे जानवर खुशी-खुशी बंदर और लोमड़ी के पीछे चल दिए। रास्ते में लोमड़ी और बंदर ने सभी का मार्गदर्शन किया और उन्हें सुरक्षित झील तक पहुंचा दिया।
सभी जानवरों ने तृप्त होकर पानी पिया और दोनों दोस्तों का आभार व्यक्त किया। इस घटना के बाद जंगल के सभी जानवर लोमड़ी और बंदर की इस सच्ची दोस्ती और परोपकारी स्वभाव की सराहना करने लगे।
इस प्रकार, लोमड़ी और बंदर की दोस्ती एक मिसाल बन गई और जंगल के सभी जानवरों ने उनसे सच्ची मित्रता का महत्व सीखा। उनकी मित्रता एक प्रेरणा बन गई कि सच्चे दोस्त हमेशा कठिन समय में एक-दूसरे का साथ देते हैं और दूसरों की भी मदद करने का सोचते हैं।
जादुई परी की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक साधारण किसान परिवार रहता था। उनके पास बहुत कुछ नहीं था, लेकिन वे अपनी मेहनत और ईमानदारी से खुश थे। उनके घर में दो बच्चे थे – एक लड़का और एक लड़की। दोनों बच्चे हमेशा खुश रहते और अपने माता-पिता की मदद करते थे। लेकिन एक बात थी जो बच्चों को हमेशा परेशान करती थी – उनके पास नए कपड़े और खिलौने नहीं थे जैसे दूसरे बच्चों के पास होते थे।
एक दिन, बच्चों ने अपने माता-पिता से पूछा, “हमारे पास भी अच्छे कपड़े और खिलौने क्यों नहीं हैं?” माता-पिता ने समझाया कि मेहनत और ईमानदारी से जो भी मिलता है, उससे ही खुश रहना चाहिए। बच्चों ने उनकी बात तो मान ली, लेकिन उनके दिल में एक अधूरी सी इच्छा रह गई।
एक रात, जब वे सो रहे थे, अचानक कमरे में एक नर्म उजाला फैला। बच्चों ने आँखें खोलकर देखा तो सामने एक खूबसूरत परी खड़ी थी। परी ने मुस्कुराते हुए कहा, “डरो मत, मैं तुम्हारे मन की बातें सुनने आई हूँ। मैंने सुना है कि तुम नए कपड़े और खिलौनों की चाह रखते हो।” बच्चों ने थोड़े झिझकते हुए अपनी इच्छा जाहिर की।
परी ने प्यार से कहा, “मैं तुम्हें ये सब चीजें दे सकती हूँ, लेकिन एक शर्त है। तुम जो भी मांगोगे, उसे पाने के लिए तुम्हें कुछ मेहनत करनी होगी। सिर्फ माँगने से कुछ नहीं मिलता। मेहनत करने से ही असली खुशी मिलती है।”
बच्चों ने परी की शर्त को मान लिया और उससे पूछा कि उन्हें क्या करना होगा। परी ने कहा, “तुम्हें रोज़ एक अच्छा काम करना होगा – चाहे किसी की मदद करना हो, किसी के साथ प्यार से बात करना हो, या कोई और नेक काम। जब तुम ऐसा करोगे, तो तुम्हारी इच्छाएँ पूरी होती जाएँगी।”
अगले दिन से, बच्चे अपनी परी की सीख को ध्यान में रखते हुए रोज़ कोई अच्छा काम करने लगे। कभी वे बुजुर्गों की मदद करते, कभी गरीबों को खाना देते, और कभी पेड़-पौधे लगाते। धीरे-धीरे उन्होंने समझा कि उनकी खुशी बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने में है।
कुछ ही समय में, परी फिर से उनके पास आई और कहा, “तुम्हारे नेक कामों ने तुम्हारे दिल को और भी सुंदर बना दिया है। अब तुममें और कुछ माँगने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि सच्ची खुशी तुम्हारे दिल में ही बसती है।”
बच्चों ने परी की इस सीख को दिल से अपना लिया। अब वे छोटे-छोटे सुखों में खुश रहना सीख गए और दूसरों के जीवन में भी खुशियाँ बाँटने लगे।
ईमानदारी का फल
यह कहानी एक छोटे से गाँव के गरीब किसान की है, जिसका नाम मोहन था। मोहन एक साधारण और ईमानदार व्यक्ति था। उसकी ईमानदारी और मेहनत के कारण लोग उसकी बहुत इज्जत करते थे। हालांकि उसके पास बहुत पैसा नहीं था, लेकिन फिर भी वह अपने जीवन से खुश था।
मोहन की खेती ही उसकी रोजी-रोटी का साधन थी। एक दिन, जब वह अपने खेत में काम कर रहा था, उसे जमीन में कुछ चमकती हुई चीज दिखाई दी। उसने पास जाकर देखा तो उसे वहाँ एक भारी थैली मिली, जिसमें ढेर सारे सोने के सिक्के थे। मोहन को समझ नहीं आ रहा था कि यह थैली कहाँ से आई। वह सोच में पड़ गया कि क्या करे।
कुछ देर सोचने के बाद उसने निश्चय किया कि यह थैली किसी और की होगी, और इसे अपने पास रखना गलत होगा। वह ईमानदारी के सिद्धांत में विश्वास करता था। इसलिए उसने तुरंत गाँव के सरपंच के पास जाकर थैली उन्हें सौंप दी और सारी बात बताई। सरपंच उसकी ईमानदारी देखकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने मोहन से कहा, “आज के समय में तुम्हारे जैसे ईमानदार लोग बहुत कम हैं।”
सरपंच ने मोहन की तारीफ करते हुए पूरे गाँव को इस बात की जानकारी दी। लोग उसकी ईमानदारी की मिसाल देने लगे। सरपंच ने यह भी घोषणा की कि जिस व्यक्ति ने थैली खोई थी, वह आकर अपनी थैली पहचान ले और अपनी पहचान साबित करे, ताकि यह सही व्यक्ति को लौटाई जा सके।
कुछ दिनों बाद, गाँव के एक व्यापारी ने आकर थैली पर अपना हक जताया और अपनी पहचान भी प्रमाणित की। सरपंच ने व्यापारी को थैली लौटाते समय कहा, “यह थैली तुम्हें वापस मिल रही है, इसके लिए तुम्हें मोहन को धन्यवाद कहना चाहिए। उसकी ईमानदारी की वजह से ही यह धन तुम्हें मिल सका है।”
व्यापारी ने मोहन को धन्यवाद देते हुए कहा, “तुम्हारी ईमानदारी ने मुझे मेरी मेहनत का फल वापस दिला दिया। मैं इसके बदले तुम्हें कुछ इनाम देना चाहता हूँ।” मोहन ने विनम्रता से मना करते हुए कहा, “यह मेरा फर्ज था, मैं इनाम के लिए यह काम नहीं कर रहा था।”
लेकिन व्यापारी ने उसकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा को सम्मान देने के लिए उसे कुछ धनराशि और हर साल मुफ्त अनाज देने का वचन दिया।
इस प्रकार मोहन की ईमानदारी ने न सिर्फ उसकी गरीबी को दूर किया, बल्कि उसे समाज में एक सम्मानित स्थान भी दिलाया। यह कहानी हमें सिखाती है कि ईमानदारी का फल हमेशा मीठा होता है, और जो व्यक्ति सच्चे दिल से दूसरों की भलाई चाहता है, उसका जीवन सदा खुशहाल रहता है।
ईमानदारी का फल भले ही देर से मिले, पर उसका स्वाद सबसे मीठा होता है।
जादुई मछली की कहानी
बहुत समय पहले एक गरीब मछुआरा था जो समुद्र के किनारे एक छोटे से गाँव में रहता था। वह हर सुबह अपनी पुरानी नाव लेकर मछलियाँ पकड़ने जाता था। उसका जीवन बहुत कठिन था, लेकिन वह मेहनती और ईमानदार था। उसकी पत्नी हमेशा उसकी मेहनत पर गर्व करती थी, हालांकि उनके पास सुख-सुविधाओं की कमी थी।
एक दिन, मछुआरा समुद्र के किनारे बैठा अपने जाल में मछलियाँ फँसाने की कोशिश कर रहा था। कई घंटों तक उसे कोई मछली नहीं मिली। हताश होकर उसने आखिरी बार जाल फेंका, और इस बार उसे कुछ भारी महसूस हुआ। जब उसने जाल को खींचा तो उसमें एक सुंदर सुनहरी मछली थी। मछुआरा बहुत खुश हुआ, क्योंकि उसने इतनी अनोखी मछली पहले कभी नहीं देखी थी।
लेकिन जैसे ही उसने मछली को हाथ में लिया, मछली ने अचानक बोलना शुरू कर दिया, “हे मछुआरे, मुझे छोड़ दो। मैं एक जादुई मछली हूँ, अगर तुम मुझे छोड़ दोगे तो मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर दूँगी।”
मछुआरा यह सुनकर हैरान रह गया। उसने मछली से पूछा, “क्या तुम सच में मेरी इच्छाएँ पूरी कर सकती हो?”
मछली ने जवाब दिया, “हाँ, तुम मुझसे जो भी माँगोगे, मैं उसे पूरा कर दूँगी।”
मछुआरा ईमानदार व्यक्ति था, इसलिए उसने मछली से कहा, “मुझे कोई अमीर बनने की चाह नहीं है। मैं बस इतना चाहता हूँ कि मेरे परिवार को रोज़ की ज़रूरतें पूरी हो सकें।”
मछली ने उसकी सादगी और भलमनसाहत को देखते हुए उसकी बात मान ली और कहा, “जाओ, जब तुम घर पहुँचोगे, तो तुम्हारा घर एक सुंदर सा मकान बन चुका होगा, और तुम्हारे पास काफी खाना होगा।” मछुआरे ने धन्यवाद कहा और मछली को वापस समुद्र में छोड़ दिया।
जब मछुआरा अपने घर पहुँचा, तो देखा कि उसका पुराना झोपड़ा अब एक खूबसूरत घर में बदल गया था। उसकी पत्नी खुशी से उछल पड़ी। घर में खाने-पीने का ढेर सारा सामान था, और वे दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
कुछ दिन बाद उसकी पत्नी ने कहा, “हमें अब और भी अच्छी चीजें चाहिए। जाओ, उस जादुई मछली से फिर कुछ माँग लो।” पहले तो मछुआरे को यह ठीक नहीं लगा, लेकिन पत्नी के कहने पर वह फिर से समुद्र के किनारे गया और मछली को पुकारा। मछली फिर सामने आई और उसने विनम्रता से मछुआरे की नई इच्छा भी पूरी कर दी।
धीरे-धीरे मछुआरे की पत्नी की इच्छाएँ बढ़ती गईं। हर बार वह नई-नई चीजें माँगती, और मछुआरा मछली के पास जाकर माँगता। एक दिन उसकी पत्नी ने राजा बनने की इच्छा जताई। मछुआरा अब खुद को बेचारा महसूस कर रहा था, लेकिन मछली के पास गया और उसने यह इच्छा भी माँगी।
इस बार जब मछुआरा वापस आया तो देखा कि उनकी झोपड़ी एक महल में बदल चुकी है और उसकी पत्नी एक रानी के जैसे सिंहासन पर बैठी है। लेकिन फिर भी उसकी पत्नी को संतोष नहीं था। उसने चाहा कि वह समुद्र की रानी बन जाए और सारी दुनिया पर राज करे।
मछुआरा खुद को मछली के पास जाकर माँगने के लिए मजबूर महसूस कर रहा था। जैसे ही उसने अपनी पत्नी की अंतिम इच्छा मछली से कही, मछली ने दुखी होकर कहा, “तुम्हारी पत्नी की लालच की कोई सीमा नहीं है। यह उसकी आखिरी इच्छा थी। अब वह सब कुछ खो देगी।”
जब मछुआरा घर लौटा तो उसने देखा कि महल गायब हो चुका है, और उसकी पत्नी फिर उसी पुरानी झोपड़ी में बैठी थी। उसके पास न तो कोई सुख-सुविधा थी, न ही कोई दौलत। वह अपने लालच के कारण सब कुछ खो चुकी थी।
मछुआरे ने समझ लिया कि संतोष ही असली सुख है। अब वह और उसकी पत्नी अपनी पुरानी स्थिति में लौट आए थे, लेकिन इस बार वे अपनी किस्मत से संतुष्ट थे।
जुबान की कीमत
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक बच्चा रहता था जिसका नाम अर्जुन था। अर्जुन बहुत होशियार था, लेकिन उसमें एक कमजोरी थी—वह अक्सर अपनी ज़ुबान पर काबू नहीं रख पाता था। वह किसी भी बात को बिना सोचे-समझे कह देता था, और कभी-कभी उसकी बातें दूसरों को बहुत चोट पहुँचाती थीं।
एक दिन, अर्जुन के गाँव में एक ज्ञानी संत आए। उन्होंने गाँव वालों से कहा कि वह अपनी जिंदगी में एक बड़ा उपहार देने वाले हैं, जो उन्हें सबक सिखाएगा। अर्जुन ने सुना और संत के पास जाने का निर्णय लिया।
वह संत के पास पहुँचा और उन्हें अपनी समस्या बताई कि वह अपनी जुबान पर काबू नहीं रख पाता। संत मुस्कुराए और अर्जुन से कहा, “मैं तुम्हें एक अनुभव देना चाहता हूँ, ताकि तुम समझ सको जुबान की असली कीमत।”
संत ने अर्जुन से एक तौलिया लिया और उसे गाँव के बड़े पोखरे में डाल दिया। फिर संत ने अर्जुन से कहा, “तुम तौलिया निकालो।”
अर्जुन ने तौलिया पानी से बाहर निकाल लिया। संत ने फिर कहा, “अब तुम इस तौलिये को फिर से उसी पोखरे में डाल दो।”
अर्जुन ने बिना कुछ कहे तौलिये को फिर से डाल दिया। संत ने फिर मुस्कुराते हुए पूछा, “अब तुम तौलिये को बाहर निकाल सकते हो?”
अर्जुन बोला, “नहीं, अब इसे निकालना बहुत कठिन हो गया है।”
संत ने धीरे से कहा, “यही है जुबान की ताकत। जब तुम शब्दों को बाहर निकालते हो, तो वे पानी की तरह फैल जाते हैं, और फिर उन्हें वापस लेना उतना ही मुश्किल होता है।”
अर्जुन को समझ में आ गया कि उसकी जुबान भी उसी तौलिये की तरह है। एक बार जो शब्द निकल गए, उनका वापस आना बहुत कठिन हो जाता है। संत ने उसे यह भी समझाया कि जुबान का प्रयोग हमेशा सोच-समझकर करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी एक जरा सी बात किसी का दिल तोड़ सकती है और वह शब्द हमेशा के लिए चुप हो जाते हैं।
अर्जुन ने उस दिन के बाद से अपनी जुबान पर पूरी तरह से काबू पाया। वह अब हर शब्द को सोचकर बोलता था और अपनी जुबान की कीमत को समझ चुका था। उसने देखा कि जब वह संयमित रहता था, तो लोग उसे अधिक सम्मान देते थे, और उसकी बातें दूसरों के दिलों में जगह बना लेती थीं।
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