Short Story With Pictures For Kindergarten -यहाँ कुछ आपके लिए short story Kindergarten दिए गए है. जिसे आपको जरूर पढ़नी चाहिए.
सजग चिड़िया
एक घने जंगल में नीले रंग की एक छोटी और समझदार चिड़िया रहती थी, जिसका नाम पंखुरी था। पंखुरी अपने सुंदर और मजबूत घोंसले के लिए जानी जाती थी। जब पंखुरी का घोंसला तैयार हो गया, तो उसने उसमें अंडे दे दिए। उसे अपने अंडों से बहुत प्यार था, और वह दिन-रात उनकी देखभाल में लगी रहती थी।
एक दिन पंखुरी खाने की तलाश में घोंसले से थोड़ी दूर गई। तभी एक बड़े पेड़ के पीछे से एक काला सांप घोंसले की ओर बढ़ने लगा। वह सांप बहुत चालाक और खतरनाक था, और उसे चिड़ियों के अंडे खाने का शौक था। जैसे ही सांप ने पंखुरी के घोंसले में अंडों की महक महसूस की, उसने घोंसले की ओर रेंगना शुरू कर दिया।
इसी बीच, पंखुरी अपने घोंसले की ओर लौट रही थी। उसने सांप को अपनी ओर आते देखा और समझ गई कि उसके अंडों पर खतरा मंडरा रहा है। वह थोड़ी डर गई, लेकिन उसने तुरंत सोचा कि अगर वह घबरा गई, तो उसका घोंसला और अंडे दोनों ही खतरे में पड़ सकते हैं।
पंखुरी ने अपने दिमाग को शांत रखा और एक तरकीब सोची। उसने देखा कि सांप बहुत धीरे-धीरे रेंगता हुआ ऊपर चढ़ रहा है। वह तुरंत अपने पंख फैलाकर सांप के सामने उड़ने लगी और तेज आवाज में चहचहाने लगी, मानो उसे सांप की मौजूदगी का कोई डर नहीं था। पंखुरी ने जानबूझकर सांप का ध्यान अपनी ओर खींचा ताकि सांप उसके घोंसले तक न पहुँच सके।
जब सांप का ध्यान पंखुरी की ओर गया, तो उसने घोंसले की तरफ बढ़ना छोड़ दिया और पंखुरी का पीछा करने लगा। पंखुरी चालाकी से सांप को घोंसले से दूर ले जाने लगी और धीरे-धीरे उसे जंगल के एक गहरे हिस्से में ले गई, जहाँ और भी जानवर मौजूद थे। जैसे ही सांप ने पंखुरी को पकड़ने के लिए छलांग लगाई, पंखुरी तेजी से उड़कर एक ऊँचे पेड़ की डाल पर जा बैठी। सांप खाली हाथ रह गया और समझ गया कि वह चिड़िया उसे धोखा देकर अपने घोंसले की ओर से दूर ले आई है।
थक-हारकर सांप वहां से चला गया। पंखुरी ने राहत की साँस ली और तेजी से वापस अपने घोंसले की ओर लौट गई। उसने अपने अंडों को सुरक्षित देखकर राहत महसूस की। उस दिन के बाद, पंखुरी ने एक नई योजना बनाई। उसने घोंसले के चारों ओर कांटेदार शाखाएं लगाईं ताकि कोई भी शिकार करने वाला जीव उसके घोंसले तक न पहुँच सके।
इस तरह, पंखुरी की सावधानी और समझदारी ने उसके अंडों को सुरक्षित रखा। उसने यह भी सीखा कि मुश्किल समय में घबराने की बजाय समझदारी से काम लिया जाए तो हर खतरे को मात दी जा सकती है।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मुश्किल समय में धैर्य और समझदारी से काम लेना चाहिए।
दोस्तों का पेड़
एक सुंदर गाँव था, जहाँ हरियाली की भरमार थी। वहाँ एक विशाल, पुराना बरगद का पेड़ था, जिसे गाँव वाले “दोस्तों का पेड़” कहते थे। यह पेड़ गाँव के बीचोंबीच स्थित था और बरसों से सभी गाँव वालों का साथी रहा था। गाँव के लोग इस पेड़ को बहुत प्यार करते थे और नियमित रूप से पानी देते, इसकी देखभाल करते, और इसके नीचे बैठकर आराम करते थे।
पेड़ के नीचे गाँव के बच्चे खेलते, बुजुर्ग लोग बैठकर कहानियाँ सुनाते, और जवान लोग जीवन की बातें करते थे। गर्मियों के दिनों में इसकी घनी छांव सबको राहत देती थी, और बरसात में इसकी शाखाएँ सबको भीगने से बचाती थीं। यह पेड़ गाँव की परंपराओं और खुशियों का हिस्सा बन गया था।
एक दिन गाँव में कुछ लोग आए जो पेड़ को काटने की योजना बना रहे थे। उन्होंने गाँव के मुखिया से कहा, “हम इस पेड़ की लकड़ी से फर्नीचर बनाना चाहते हैं। हम आपको इसके बदले बहुत सारा पैसा देंगे।”
गाँव के मुखिया ने सोचा कि यह पैसा गाँव के विकास में काम आ सकता है। उसने गाँव वालों को बुलाकर बताया कि पेड़ को काटने से उन्हें अच्छी रकम मिल सकती है। कुछ लोग लालच में आ गए और पेड़ काटने के पक्ष में बोलने लगे। लेकिन बहुत से गाँव वाले, खासकर बच्चे और बुजुर्ग, इस पेड़ को बचाना चाहते थे। उन्होंने मुखिया से विनती की, “यह पेड़ हमारी यादों का हिस्सा है, इसे मत काटिए।”
अगले दिन जब लकड़ी काटने वाले लोग पेड़ को काटने के लिए अपने औजार लेकर आए, तो गाँव के बच्चे पेड़ के चारों ओर गोल घेरा बनाकर खड़े हो गए। बच्चों के माता-पिता और अन्य लोग भी उनके साथ आ गए। सबने एक सुर में कहा, “हम अपने दोस्तों के पेड़ को नहीं काटने देंगे।”
पेड़ काटने वाले लोग यह देखकर हैरान हो गए। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक पेड़ है। तुम लोग क्यों इतना शोर मचा रहे हो?”
तभी गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति, दादा जी, आगे आए और बोले, “यह पेड़ सिर्फ एक पेड़ नहीं है। यह हमारी जिंदगी का हिस्सा है। हमने इसके साथ कई पल बिताए हैं। जब हम परेशान होते हैं, तो इसकी छांव में सुकून पाते हैं। यह हमारे गाँव का दोस्त है, और हम इसे नहीं खोना चाहते।”
उनकी बात सुनकर पेड़ काटने वाले समझ गए कि इस पेड़ का गाँव वालों के लिए क्या महत्व है। उन्होंने पेड़ को छोड़ने का निर्णय लिया और वहां से चले गए। गाँव वालों ने खुशी से नाचना-गाना शुरू कर दिया, और बच्चों ने पेड़ के चारों ओर खूब खेला।
इसके बाद गाँव वालों ने मिलकर पेड़ के चारों ओर एक बाड़ बना दी और यह तय किया कि इस पेड़ की देखभाल और सुरक्षा के लिए हर कोई जिम्मेदारी से काम करेगा। उन्होंने नियमित रूप से पेड़ को पानी देना, इसकी जड़ों में खाद डालना और इसके आसपास सफाई करना शुरू कर दिया। पेड़ भी जैसे उनके इस प्रेम को समझता था और हर साल अधिक छांव और फल देने लगा।
धीरे-धीरे इस घटना की खबर आसपास के गाँवों में भी फैल गई। लोग दूर-दूर से इस “दोस्तों के पेड़” को देखने आने लगे। यह पेड़ अब गाँव की शान बन चुका था और गाँव के लोग गर्व से कहते थे, “यह हमारा दोस्त है, जिसे हमने अपने प्यार से बचाया है।”
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि पेड़-पौधे भी हमारे दोस्त होते हैं। हमें उनकी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि वे हमारे जीवन का हिस्सा हैं और हमें प्रकृति से जोड़कर रखते हैं।
आलसी चूहा
एक हरे-भरे खेत के पास एक बड़ा सा बिल था, जिसमें एक चूहा रहता था। उसका नाम मोंटू था। मोंटू को हर कोई “आलसी चूहा” कहता था क्योंकि उसे कोई काम करना पसंद नहीं था। जब भी खेत के बाकी जानवर अनाज इकट्ठा करने या सर्दियों के लिए खाना जमा करने की बात करते, मोंटू हमेशा कोई बहाना बनाकर टाल देता।
मोंटू के सबसे अच्छे दोस्त थे – गिल्लू गिलहरी, झुमकी चिड़िया, और नन्हीं तितली पीहू। सर्दियों के आने से पहले, वे सभी अपने-अपने खाने का इंतजाम करने में लगे रहते थे। गिल्लू अपने लिए अखरोट और सूखे मेवे जमा करती, झुमकी घास के बीज और कीड़े इकट्ठा करती, और पीहू फूलों का रस जमा करने में लगी रहती। वे सबने मोंटू से भी कहा, “मोंटू, सर्दियां आने वाली हैं। जल्दी से अपने लिए कुछ खाना इकट्ठा कर लो, नहीं तो बाद में बहुत मुश्किल होगी।”
लेकिन मोंटू अपनी आलस की आदत से मजबूर था। वह हंसते हुए कहता, “अरे, सर्दी आने में अभी बहुत समय है। मैं आराम से बाद में इंतजाम कर लूंगा। अभी मुझे सोने दो।” और वह दिनभर आराम करता, मस्ती करता और बस इधर-उधर घूमता रहता।
समय बीतता गया, और ठंड धीरे-धीरे बढ़ने लगी। अब खेत के सारे जानवरों ने अपने-अपने बिलों और घोंसलों में खाना जमा कर लिया था और वे सर्दियों की तैयारी में लगे थे। लेकिन मोंटू ने अब तक एक भी दाना नहीं इकट्ठा किया था। उसने सोचा, “अभी भी थोड़ी गर्मी बाकी है। जब ठंड बढ़ेगी, तब देख लूंगा।” और वह फिर से सो गया।
कुछ ही दिनों बाद सर्दी का मौसम पूरी तरह से आ गया। ठंडी हवाएं चलने लगीं और चारों ओर बर्फ जैसी ठंडी धरती जम गई। सारे जानवर अपने-अपने घरों में दुबक गए और बाहर निकलना बंद कर दिया। उनके पास खाने के लिए पर्याप्त सामान था, इसलिए वे आराम से अपने घरों में सुरक्षित थे।
लेकिन मोंटू का क्या? मोंटू के पास कुछ भी खाने का इंतजाम नहीं था। ठंड इतनी ज्यादा थी कि बाहर निकलना भी मुश्किल था, और भूख के कारण मोंटू का बुरा हाल हो गया। उसके पास अब पछताने के सिवा कोई रास्ता नहीं था। वह ठंड और भूख से परेशान होकर अपने दोस्तों के पास मदद मांगने गया।
वह सबसे पहले गिल्लू के घर गया और दरवाजा खटखटाया। गिल्लू ने दरवाजा खोला और मोंटू को कांपते हुए देखा। उसने कहा, “मोंटू, मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि सर्दियों के लिए कुछ इंतजाम कर लो। लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी। अब मैं तुम्हारी कैसे मदद करूं?”
मोंटू ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “गिल्लू, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैं सच में आलसी था। अब मुझे समझ में आया कि मेहनत कितनी जरूरी होती है। कृपया मुझे थोड़ा खाना दे दो।”
गिल्लू को मोंटू पर दया आई, और उसने उसे कुछ अखरोट दिए। लेकिन उसने समझाया, “मोंटू, यह तुम्हारे लिए एक सीख है। मेहनत और तैयारी के बिना जीवन में कठिनाई आ सकती है।”
मोंटू फिर झुमकी चिड़िया और पीहू तितली के पास भी गया। दोनों ने उसे थोड़ी-थोड़ी मदद की, लेकिन उसे समझाया कि अगर वह समय पर मेहनत करता तो उसे दूसरों से मदद नहीं मांगनी पड़ती। उस दिन मोंटू ने तय कर लिया कि वह अब कभी आलस नहीं करेगा।
सर्दियों के बाद जब गर्मी का मौसम आया, मोंटू ने अपने लिए खुद से मेहनत करके अनाज जमा करना शुरू कर दिया। उसने अपनी आलसी आदत छोड़ दी और हर काम को समय पर करना सीख लिया। अब वह भी अपने दोस्तों की तरह सर्दियों के लिए पहले से तैयारी करता और आलसी चूहा कहलाने की जगह मेहनती चूहा कहलाने लगा।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आलस करना हमेशा हानिकारक होता है। मेहनत करने से ही जीवन में सुख और सफलता मिलती है।
लालची कौआ
एक हरे-भरे जंगल में एक बड़ा सा आम का पेड़ था। इस पेड़ पर एक चालाक और लालची कौआ रहता था। उसका नाम कालू था। कालू बहुत ही चालाक और लालची था, और हमेशा अपने लिए ज्यादा से ज्यादा खाना इकट्ठा करने में लगा रहता था। उसे लगता था कि जितना ज्यादा खाना उसके पास होगा, वह उतना ही सुखी रहेगा।
एक दिन कालू को पास के गाँव में एक रोटी का बड़ा टुकड़ा दिखाई दिया। वह अपनी तीखी चोंच से उस रोटी के टुकड़े को पकड़कर उड़ गया और वापस पेड़ पर आकर उसे खाने लगा। जैसे ही वह रोटी का टुकड़ा खाने लगा, उसे खयाल आया कि अगर वह थोड़ी और रोटियाँ इकट्ठा कर ले तो बहुत अच्छा होगा। इस लालच में वह उस रोटी को छोड़ कर दूसरे खाने की तलाश में निकल पड़ा।
जंगल के पास ही एक झील थी, जहाँ कई मछलियाँ तैरती थीं। कालू को वहाँ मछलियों का झुंड दिखा, और उसने सोचा, “अगर मैं एक बड़ी मछली पकड़ लूँ, तो मेरे पास बहुत खाना हो जाएगा।” यह सोचकर उसने झील के ऊपर उड़ान भरी और अपनी चोंच से एक मछली पकड़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन मछलियाँ फुर्ती से पानी में भाग गईं, और उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
अब कालू का मन उदास हो गया, लेकिन उसकी लालच अभी भी कम नहीं हुई थी। उसे लगा कि शायद कहीं और उसे कुछ और बड़ा मिल सकता है। वह उड़ते-उड़ते जंगल के उस हिस्से में पहुँच गया जहाँ पर जंगल के अन्य पक्षी और जानवर खाने की खोज में लगे रहते थे। वहाँ उसे एक खरगोश दिखाई दिया, जो अपनी गाजर खा रहा था। कालू ने सोचा, “अगर मैं इस खरगोश की गाजर छीन लूँ तो मेरे पास भी कुछ खाने का सामान हो जाएगा।”
कालू ने खरगोश के पास जाकर कांव-कांव करते हुए उससे गाजर छीनने की कोशिश की, लेकिन खरगोश ने अपनी गाजर मजबूती से पकड़ रखी थी और वह उसे छोड़ने को तैयार नहीं था। कालू ने कई बार कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहा। खरगोश ने गाजर को और मजबूती से पकड़ लिया और तेजी से वहाँ से भाग गया।
अब कालू को बहुत भूख लगने लगी थी। उसने सोचा, “मुझे तो अपना रोटी का टुकड़ा ही खा लेना चाहिए था। कम से कम मेरा पेट तो भर जाता। अब न रोटी है, न मछली, और न गाजर।”
उदास और थका हुआ कालू अपने पेड़ के पास लौट आया। उसे अचानक खयाल आया कि उसकी रोटी का टुकड़ा पेड़ के नीचे रखा हो सकता है। वह तेजी से नीचे उतरा और इधर-उधर रोटी के टुकड़े को खोजने लगा, लेकिन वहाँ रोटी का टुकड़ा नहीं था। किसी और जानवर ने उसे उठा लिया था।
अब कालू को समझ में आ गया कि लालच करने की वजह से वह भूखा रह गया है। अगर उसने संतोष किया होता और अपनी रोटी खा ली होती, तो आज उसका पेट भरा होता। वह पछताते हुए सोचने लगा, “अगर मैं हर बार लालच न करता और जो कुछ भी मेरे पास होता, उसी से संतुष्ट रहता, तो आज मुझे भूखा नहीं रहना पड़ता।”
उस दिन के बाद से कालू ने तय किया कि वह जो भी खाना पाएगा, उसी से संतुष्ट रहेगा और ज्यादा के लालच में नहीं पड़ेगा। धीरे-धीरे कालू ने अपने लालच पर काबू पाना सीख लिया और अब वह एक समझदार और संतोषी कौआ बन गया।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लालच बुरी बला है। संतोष में ही सुख है, और जो हमारे पास है उसी में खुश रहना चाहिए।
छोटा पौधा और बड़ा पेड़
एक घने जंगल के किनारे एक विशाल और ऊँचा बरगद का पेड़ खड़ा था। वह बरगद का पेड़ बहुत पुराना और ताकतवर था। उसकी शाखाएँ इतनी बड़ी थीं कि दूर-दूर से लोग उसकी छांव का आनंद लेने आते थे। उस पेड़ को अपनी ताकत पर बहुत घमंड था। वह सोचता था कि जंगल में उससे बड़ा और मजबूत कोई नहीं है।
बरगद के पेड़ के पास ही एक छोटा सा पौधा भी था। वह नन्हा पौधा अभी-अभी जमीन से बाहर निकला था और धीरे-धीरे बढ़ने की कोशिश कर रहा था। वह बहुत कमजोर और छोटा था, पर उसमें जीवन और बढ़ने की इच्छा भरी हुई थी। बरगद के पेड़ ने उसे देखकर मजाक उड़ाते हुए कहा, “तुम्हारा यहाँ क्या काम? तुम इतने छोटे और कमजोर हो कि कोई भी तुम्हें रौंद सकता है। तुम्हें इस जंगल में कोई जगह नहीं मिलेगी!”
नन्हे पौधे ने विनम्रता से जवाब दिया, “मुझे पता है कि मैं बहुत छोटा और कमजोर हूँ, लेकिन मैं अपना जीवन जीने और धीरे-धीरे बढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ। एक दिन मैं भी बड़ा हो जाऊँगा।”
बरगद का पेड़ हंसते हुए बोला, “तुम्हारे जैसे नाजुक पौधों का क्या भविष्य है? तुम यहाँ बड़ी मुश्किल से जीवित रह पाओगे। देखो मेरी तरफ, कितनी ताकत और ऊँचाई है मुझमें। मुझसे कोई भी टकरा नहीं सकता!”
नन्हे पौधे ने उसकी बातें सुनीं, पर वह चुपचाप अपने काम में लगा रहा। उसने अपनी जड़ों को मजबूत करना शुरू किया और छोटे-छोटे पत्ते निकाले। वह धीरे-धीरे जमीन से मजबूती से जुड़ता गया और अपने आप को सहारा देता रहा। बरगद का पेड़ हर बार उसे देखकर हंसता और कहता, “तुम्हारी ये मेहनत सब बेकार है। तुम कभी मेरे जितना बड़ा नहीं हो पाओगे।”
कुछ समय बाद, जंगल में एक भयानक आंधी आई। तेज हवाओं से सारे पेड़ झूमने लगे, और कुछ तो गिर भी गए। बरगद के पेड़ ने सोचा कि वह इतना बड़ा और मजबूत है कि उसे कोई आंधी नहीं गिरा सकती। वह अपने घमंड में खड़ा रहा, लेकिन आंधी इतनी तेज थी कि उसकी जड़ें भी हिलने लगीं। बरगद का पेड़ हवा के झोंकों से डगमगाने लगा और अचानक, एक जोरदार झटके के साथ गिर पड़ा। उसके घमंड का किला ढह गया और वह धरती पर औंधे मुँह गिर गया।
जब आंधी शांत हुई, तो नन्हा पौधा अब भी वहीं खड़ा था। उसने अपनी नाजुक टहनियों को झुका कर आंधी का सामना किया था और अपनी जड़ों को मजबूती से जमीन में पकड़ कर रखा था। बरगद का पेड़ अब पछता रहा था, लेकिन अब कुछ नहीं कर सकता था।
गिरा हुआ बरगद का पेड़ नन्हे पौधे से बोला, “तुम्हारे पास इतनी शक्ति कैसे आई कि तुम आंधी में भी टिके रहे, जबकि मैं गिर गया?”
नन्हे पौधे ने विनम्रता से जवाब दिया, “बड़े भाई, मैंने अपने आकार और मजबूती पर घमंड नहीं किया। मैंने केवल अपनी जड़ों को मजबूत करने की कोशिश की और आंधी में झुककर उसे सहने का प्रयास किया। आपने अपने घमंड में अपनी जड़ों को नजरअंदाज कर दिया, और इसी कारण आप गिर गए।”
बरगद का पेड़ यह सुनकर शर्मिंदा हो गया। उसने महसूस किया कि केवल ताकतवर और ऊँचा होना ही सब कुछ नहीं है, बल्कि विनम्रता और सहनशीलता भी जरूरी हैं।
उस दिन के बाद से जंगल के सभी पेड़ और पौधे नन्हे पौधे का आदर करने लगे। धीरे-धीरे नन्हा पौधा भी बड़ा होकर एक मजबूत पेड़ बन गया, पर उसने कभी घमंड नहीं किया। उसने सबको सिखाया कि विनम्रता और सहनशीलता ही असली ताकत होती है।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि घमंड नहीं करना चाहिए। विनम्रता और सहनशीलता से ही हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।
मधुमक्खियों का घर
एक हरे-भरे जंगल में बहुत सारी मधुमक्खियाँ रहती थीं। उन्होंने जंगल के बीचोंबीच एक बड़े, मजबूत पेड़ पर अपना घर बनाया था। यह घर मधुमक्खियों का छत्ता था, जो उनकी मेहनत और एकता का प्रतीक था। छत्ते में रानी मधुमक्खी रहती थी, जो सारे छत्ते का ध्यान रखती थी और सब मधुमक्खियों को मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करती थी। मधुमक्खियाँ दिनभर फूलों से रस इकट्ठा करतीं और उसे छत्ते में जमा करतीं, ताकि वहाँ शहद बन सके।
रानी मधुमक्खी हमेशा सभी मधुमक्खियों से कहती, “हमारा छत्ता हमारी मेहनत और एकता का घर है। इसे सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। अगर हम सब मिलकर काम करेंगे, तो हमारा छत्ता हर तरह की मुसीबत से सुरक्षित रहेगा।”
सभी मधुमक्खियाँ रानी की बातों को मानतीं और मिलकर काम करतीं। हर मधुमक्खी को अपनी जिम्मेदारी का एहसास था। कुछ मधुमक्खियाँ रस इकट्ठा करतीं, तो कुछ छत्ते की सफाई करतीं, और कुछ बाहर के खतरे से छत्ते की रक्षा करतीं। हर किसी का काम अलग था, लेकिन उनका उद्देश्य एक ही था – छत्ते को सुरक्षित और मजबूत बनाए रखना।
एक दिन जंगल में एक भालू आया। उसे शहद बहुत पसंद था, और जैसे ही उसने मधुमक्खियों के छत्ते की खुशबू सूंघी, उसका मुँह में पानी आ गया। उसने सोचा कि अगर वह इस छत्ते को तोड़ दे तो उसे खूब सारा शहद मिल सकता है। भालू धीरे-धीरे पेड़ के पास गया और अपने बड़े-बड़े पंजों से छत्ते को खींचने की कोशिश करने लगा।
मधुमक्खियों ने देखा कि उनका छत्ता खतरे में है। उन्होंने तुरंत अपनी रानी को खबर दी। रानी मधुमक्खी ने तुरंत सबको इकट्ठा किया और कहा, “हमें अपने घर को बचाना होगा। अगर हम सब मिलकर कोशिश करेंगे, तो भालू को यहाँ से भगा सकते हैं।”
रानी की बात सुनकर सभी मधुमक्खियाँ तैयार हो गईं। वे सब भालू के चारों ओर उड़ने लगीं और उसे डंक मारने लगीं। भालू ने अपनी नाक, मुँह और आँखों पर मधुमक्खियों के डंक महसूस किए और दर्द से कराहने लगा। उसने छत्ते को छोड़ दिया और वहाँ से भागने की कोशिश की, लेकिन मधुमक्खियाँ लगातार उसका पीछा करती रहीं। भालू को समझ में आ गया कि अगर उसने मधुमक्खियों के छत्ते को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की तो वह खुद ही मुश्किल में पड़ जाएगा।
आखिरकार भालू ने हार मान ली और जंगल के दूसरे हिस्से में भाग गया। मधुमक्खियों ने अपने छत्ते को बचा लिया और खुशी-खुशी वापस लौट आईं। रानी मधुमक्खी ने सबको बधाई दी और कहा, “देखो, हमारी एकता और मेहनत से हमने अपने घर को बचा लिया। अगर हम सब मिलकर काम करते हैं, तो कोई भी ताकत हमें नुकसान नहीं पहुँचा सकती।”
इसके बाद मधुमक्खियों ने फिर से अपने छत्ते को ठीक करना शुरू कर दिया। उन्होंने टूटे हिस्सों को नए छत्ते से जोड़ा और शहद बनाने का काम फिर से शुरू कर दिया। अब वे और भी सतर्क रहने लगीं और हर दिन मिल-जुलकर अपने छत्ते की सुरक्षा का ध्यान रखने लगीं।
इस तरह, मधुमक्खियों ने यह सीख लिया कि एकता में शक्ति होती है। उनके छत्ते में फिर से शहद भरा जाने लगा, और जंगल के सभी जानवर उनकी एकता और मेहनत की प्रशंसा करने लगे।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि एकता में ही बल है। अगर हम सब मिलकर किसी काम को करें और हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को निभाए, तो हम किसी भी मुसीबत का सामना कर सकते हैं।
चतुर बिल्ली और बंदर
एक सुंदर गाँव के पास एक घना जंगल था। उस जंगल में बहुत से जानवर रहते थे, जिनमें एक बंदर और एक बिल्ली भी थे। दोनों की आपस में बहुत अच्छी दोस्ती थी, लेकिन दोनों की आदतें एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थीं। बंदर थोड़ा आलसी और लालची था, जबकि बिल्ली बहुत चतुर और समझदार थी।
एक दिन बंदर को एक तरकीब सूझी। उसने सोचा कि अगर वह किसी तरह से बिल्ली की मदद से अपना पेट भर सके तो उसे मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। वह हमेशा अपने खाने के बारे में ही सोचता रहता था और हर समय कुछ नया खाने की तलाश में रहता था। बंदर ने अपने दिमाग में एक योजना बनाई और चुपके से बिल्ली के पास पहुंचा।
बंदर ने बिल्ली से कहा, “बिल्ली बहन, क्या तुमने सुना है कि गाँव के किसी घर में एक मटके में बहुत सारे ताजे मखाने रखे हैं? अगर हम वहाँ पहुँच जाएँ तो हमें कुछ दिनों के लिए भरपेट खाना मिल जाएगा।”
बिल्ली ने बंदर की बात सुनी और समझ गई कि बंदर की चाल क्या है। उसने सोचा, “यह बंदर तो आलसी और लालची है। इसे बिना मेहनत किए ही मखाने चाहिए। लेकिन मैं भी इसे सबक सिखाऊँगी।” फिर भी उसने बंदर के साथ योजना में शामिल होने का नाटक किया और बोली, “ठीक है, बंदर भैया। हम दोनों मिलकर मखाने हासिल करेंगे। लेकिन पहले हमें उस मटके का पता लगाना होगा।”
बंदर ने खुशी-खुशी सहमति जताई और दोनों गाँव की ओर चल पड़े। जब वे गाँव में पहुँचे तो उन्हें एक घर में बड़ा सा मटका दिखाई दिया, जिसके ऊपर कपड़ा ढंका हुआ था। बंदर ने देखा कि मटका थोड़ा ऊँचाई पर रखा हुआ था। उसने बिल्ली से कहा, “बिल्ली बहन, तुम फुर्ती से ऊपर चढ़ सकती हो। तुम मटके के ऊपर चढ़ जाओ और मखाने मुझे नीचे फेंक दो। मैं यहाँ नीचे बैठकर उन्हें इकट्ठा करूँगा।”
बिल्ली ने सोचा कि यही सही मौका है बंदर को सबक सिखाने का। वह मटके के पास पहुँची और मटके का कपड़ा हटा कर देखा तो मखानों की जगह उसमें गर्म दूध भरा हुआ था। अब बिल्ली के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने बंदर से कहा, “अरे वाह, इसमें तो बहुत स्वादिष्ट मखाने हैं। मैं तुम्हारे लिए फेंकती हूँ।”
यह कहकर उसने अपना पंजा दूध में डुबोया और उसे चाटने लगी। वह ऐसे दिखाने लगी जैसे वह सच में मखाने खा रही हो। बंदर नीचे बैठा-बैठा लार टपकाता रहा और बेसब्री से इंतजार करने लगा। उसने कहा, “अरे बिल्ली बहन, जल्दी करो! मुझे भी मखाने चाहिए।”
बिल्ली ने चालाकी से कहा, “बस, एक और मखाना खाकर फेंकती हूँ। यह बहुत स्वादिष्ट हैं।” वह बार-बार ऐसा ही कहती रही और बार-बार दूध पीती रही। उसे यह पता था कि बंदर को बिना मेहनत किए मखाने नहीं मिलेंगे और उसे सबक भी मिल जाएगा।
कुछ समय बाद, बिल्ली ने सारा दूध पी लिया और मटका खाली कर दिया। जब बंदर ने देखा कि बिल्ली ने मखाने फेंकने के बजाय खुद ही सब कुछ खा लिया है, तो वह गुस्से में आ गया और बोला, “तुमने मुझे धोखा दिया! मुझे एक भी मखाना नहीं दिया।”
बिल्ली ने मुस्कुराते हुए कहा, “बंदर भैया, मेहनत के बिना कुछ नहीं मिलता। तुमने सिर्फ अपना लालच दिखाया और आलस किया। मैं तुम्हें समझाने की कोशिश कर रही थी कि मेहनत करके ही भोजन मिलता है। अब मुझे माफ करो, क्योंकि मैंने अपने हिस्से की मेहनत से भोजन पा लिया है। अगली बार से तुम भी मेहनत करना और मेहनत से अपना भोजन हासिल करना सीखना।”
बंदर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने ठान लिया कि अब से वह आलस छोड़कर खुद मेहनत करेगा।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि लालच और आलस से कुछ भी हासिल नहीं होता। हमें मेहनत करके ही जीवन में सफलता और सुख प्राप्त होते हैं।
दो दोस्तों का साथ
एक समय की बात है। दो बहुत अच्छे दोस्त थे, अमन और राहुल। दोनों का साथ इतना गहरा था कि वे हर काम में एक-दूसरे का साथ देते थे। गाँव के लोग उनकी दोस्ती की मिसाल दिया करते थे। दोनों एक-दूसरे का बहुत ख्याल रखते थे, चाहे सुख का समय हो या दुख का, वे हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े रहते थे।
अमन और राहुल ने साथ में कई यात्राएँ की थीं। दोनों को पहाड़ों की खूबसूरती, जंगलों की शांति और नदियों की धाराओं का आनंद लेना बहुत पसंद था। एक दिन दोनों ने तय किया कि वे पास के जंगल में एक लंबी यात्रा पर निकलेंगे। दोनों उत्साह के साथ अपने सफर की तैयारियाँ करने लगे। उन्होंने खाने-पीने का सामान लिया, रास्ते में काम आने वाली चीजें जुटाईं, और फिर सुबह-सुबह ही जंगल की ओर चल दिए।
जंगल में हरियाली और ठंडक थी। पक्षियों की चहचहाहट और हवा में ताजगी दोनों को बहुत अच्छी लग रही थी। चलते-चलते वे जंगल के काफी अंदर तक पहुँच गए। जैसे-जैसे दिन ढलने लगा, जंगल में अंधेरा गहराने लगा। अमन और राहुल को लगा कि अब लौट जाना चाहिए। लेकिन इतने अंदर आ जाने के कारण उन्हें रास्ता ठीक से याद नहीं रहा। उन्होंने इधर-उधर देखा, पर हर दिशा एक जैसी लग रही थी।
अब दोनों को थोड़ी चिंता होने लगी। राहुल ने कहा, “अमन, लगता है हम रास्ता भटक गए हैं। क्या तुमने आने का रास्ता याद रखा था?”
अमन ने थोड़ी झिझकते हुए कहा, “मुझे लगा कि तुम रास्ता देख रहे होगे। अब हम दोनों को मिलकर कोई रास्ता खोजना होगा।”
दोनों ने आसपास का जायजा लिया और किसी ऊँचे पेड़ पर चढ़कर देखने की कोशिश की कि शायद कोई रास्ता दिखे। लेकिन घना जंगल था, और दूर-दूर तक सिर्फ पेड़ ही पेड़ नजर आ रहे थे। इसी दौरान उन्हें किसी जंगली जानवर की आवाज सुनाई दी, जो शायद पास ही कहीं था।
अमन थोड़ी देर के लिए घबराया, लेकिन राहुल ने उसे शांत किया। “डरने की कोई जरूरत नहीं है,” राहुल ने कहा। “अगर हम साथ रहें और समझदारी से काम लें, तो हमें रास्ता जरूर मिल जाएगा।”
दोनों ने तय किया कि वे मिलकर एक रास्ता बनाने की कोशिश करेंगे। उन्होंने पेड़ की छालों पर निशान लगाना शुरू कर दिया, ताकि आगे बढ़ते समय वे अपने पीछे के रास्ते को याद रख सकें। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ रहे थे, उनका हौसला भी बढ़ता जा रहा था। दोनों मिलकर हर कदम पर एक-दूसरे का सहारा दे रहे थे।
अचानक उन्हें कुछ दूर पर एक छोटी सी झोपड़ी दिखाई दी। दोनों ने राहत की साँस ली और खुशी-खुशी झोपड़ी की तरफ दौड़ पड़े। झोपड़ी के पास एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा था। उन्होंने बुजुर्ग से मदद मांगी और अपनी परेशानी बताई। उस बुजुर्ग ने उनकी बात ध्यान से सुनी और उन्हें समझाया कि कैसे वे गाँव की तरफ लौट सकते हैं।
बुजुर्ग ने उन्हें एक छोटा नक्शा भी बना कर दिया और रास्ते की पहचान के लिए कुछ संकेत दिए। दोनों ने बुजुर्ग का धन्यवाद किया और गाँव की ओर चल पड़े। अब उनके दिल में कोई डर नहीं था, क्योंकि उन्होंने अपने दोस्त के साथ होने का महत्व समझ लिया था।
जंगल से बाहर निकलते समय अमन ने राहुल से कहा, “दोस्त, अगर तुम मेरे साथ नहीं होते तो शायद मैं अकेले यह सफर नहीं कर पाता। तुम्हारे साथ ने मुझे हिम्मत दी और भरोसा दिलाया कि सब ठीक हो जाएगा।”
राहुल मुस्कुराया और बोला, “अमन, हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। हमारी दोस्ती ही हमारी ताकत है। जब भी कोई मुश्किल आएगी, हम दोनों मिलकर उसे पार कर लेंगे।”
दोनों ने फिर से हाथ मिलाया और गाँव की ओर बढ़ चले। उस दिन से उनकी दोस्ती और भी गहरी हो गई, और उन्होंने ठान लिया कि वे हमेशा एक-दूसरे का साथ देंगे, चाहे कैसी भी मुश्किल क्यों न आए।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची दोस्ती में ही असली ताकत होती है। जब दो दोस्त एक-दूसरे का सहारा बनते हैं और साथ में कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो वे हर मुश्किल को पार कर सकते हैं।
सच्चा दोस्त
एक गाँव में अमर और विजय नाम के दो सच्चे दोस्त रहते थे। दोनों बचपन से ही एक-दूसरे के साथ थे। उनके बीच ऐसा गहरा बंधन था कि गाँव वाले उनकी दोस्ती की मिसाल देते थे। अमर थोड़ा शांत स्वभाव का था, जबकि विजय चंचल और हंसमुख था। दोनों के स्वभाव में भले ही अंतर था, लेकिन उनकी दोस्ती में कभी कोई दरार नहीं आई।
एक दिन अमर और विजय ने तय किया कि वे पास के जंगल में एक यात्रा पर जाएंगे। यह जंगल बहुत सुंदर था, लेकिन लोग वहाँ जाने से डरते थे क्योंकि कहा जाता था कि वहाँ कई जंगली जानवर रहते हैं। लेकिन दोनों दोस्तों के मन में रोमांच था, और उन्होंने फैसला किया कि वे मिलकर किसी भी कठिनाई का सामना करेंगे।
सुबह-सुबह दोनों ने अपने सफर की शुरुआत की। अमर और विजय अपने साथ थोड़ा-बहुत खाने का सामान और पानी लेकर चले। चलते-चलते वे जंगल के भीतर गहराई तक पहुँच गए। जंगल में पक्षियों की चहचहाहट, पेड़ों की सरसराहट और नदी की मद्धम धारा की आवाज ने दोनों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वे इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हुए आगे बढ़ते रहे।
कुछ देर बाद, अचानक अमर को एक पेड़ के नीचे कुछ चमकती हुई चीज़ दिखाई दी। जब वे पास गए तो देखा कि वह एक पुरानी सी तिजोरी थी, जो जंग से भरी हुई थी। विजय ने उत्साहित होकर कहा, “दोस्त, हो सकता है इसमें कोई खजाना हो! चलो इसे खोलते हैं।” अमर को थोड़ा डर लग रहा था, लेकिन विजय के उत्साह के आगे उसने भी हाँ कर दी।
दोनों ने मिलकर तिजोरी को खोलने की कोशिश की, लेकिन वह भारी थी और आसानी से नहीं खुली। विजय ने कहा, “अगर हम इसे गाँव तक ले जाएँ तो गाँव के लोहार से इसे खुलवा सकते हैं।” अमर ने सहमति में सिर हिलाया। लेकिन तिजोरी इतनी भारी थी कि दोनों उसे उठाने में असमर्थ थे।
तभी वहाँ एक बूढ़ा साधु आया। उसने दोनों को तिजोरी के पास झुके देखा और मुस्कुराते हुए बोला, “तुम लोग इस तिजोरी को क्यों खोलना चाहते हो?” विजय ने तुरंत जवाब दिया, “बाबा, हमें लगा कि इसमें खजाना हो सकता है।”
साधु ने हंसते हुए कहा, “तिजोरी का खजाना पाने के लिए बल से ज्यादा बुद्धि की जरूरत होती है। अगर तुम लोग सच्चे दोस्त हो और एक-दूसरे की मदद करने के लिए तैयार हो, तो यह खजाना तुम्हारा ही है।” साधु की बात सुनकर दोनों अचंभित हो गए और एक-दूसरे की ओर देखा।
साधु ने उन्हें समझाया, “यह खजाना तुम्हारी मेहनत और एकता का फल है। लेकिन यह याद रखना कि असली खजाना वही होता है, जो दिल से संजोया जाए। दोस्ती का साथ अमूल्य होता है, उसे किसी भी चीज़ के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।”
अमर और विजय को साधु की बात समझ में आ गई। उन्होंने तिजोरी को छोड़ दिया और साधु को प्रणाम किया। दोनों दोस्तों ने एक-दूसरे से वादा किया कि वे हमेशा एक-दूसरे का साथ निभाएंगे और किसी भी कठिनाई में साथ खड़े रहेंगे।
साधु की बातों ने उनकी सोच को बदल दिया, और अब वे समझ गए थे कि सच्चा खजाना उनकी दोस्ती और आपसी भरोसे में ही छुपा है। दोनों खुश होकर गाँव लौट आए और जीवनभर सच्चे दोस्त बने रहे।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि असली खजाना धन-संपत्ति नहीं, बल्कि सच्चे दोस्तों का साथ और भरोसा होता है।
चालाक खरगोश
एक हरे-भरे जंगल में एक छोटा और चालाक खरगोश रहता था। उसका नाम था चिंटू। चिंटू अपने दोस्तों के बीच अपने चतुराई भरे किस्सों के लिए जाना जाता था। जंगल के सारे जानवर उसकी बुद्धिमानी और समझदारी की तारीफ करते थे। चिंटू हमेशा सभी की मदद करने के लिए तैयार रहता था, और उसकी मदद से कई जानवर कई बार मुसीबतों से बच चुके थे।
उसी जंगल में एक लालची और ताकतवर भेड़िया भी रहता था, जिसका नाम था शेरू। शेरू जंगल के बाकी जानवरों को डराता-धमकाता रहता और जो भी उसे दिखता, उसे अपना शिकार बना लेता। शेरू के डर के कारण सारे जानवर हमेशा सहमे-सहमे रहते थे। वे चाहते थे कि किसी तरह शेरू से छुटकारा मिले, लेकिन शेरू की ताकत के सामने वे कुछ कर नहीं सकते थे।
एक दिन शेरू की नजर चिंटू पर पड़ी। उसने सोचा कि छोटे से खरगोश को पकड़ना आसान होगा और उसे देखकर उसकी भूख और भी बढ़ गई। वह तुरंत चिंटू की ओर बढ़ा और बोला, “खरगोश, तुम मेरे अगले शिकार हो। आज तुम्हें कोई नहीं बचा सकता।”
चिंटू समझ गया कि अब उसे अपनी चतुराई का इस्तेमाल करना होगा, नहीं तो शेरू उसे अपना शिकार बना लेगा। उसने बड़ी शांति से भेड़िए से कहा, “शेरू भाई, मुझे पकड़ने से आपको कुछ खास फायदा नहीं होगा। मैं तो बहुत छोटा हूँ, मेरा पेट भरने से आपकी भूख नहीं मिटेगी। लेकिन मुझे पता है कि जंगल के पास एक गुफा में एक बड़ा और मोटा हिरण रहता है। अगर आप चाहें तो मैं आपको वहाँ ले जा सकता हूँ, और उसे पकड़कर आपकी भूख पूरी हो सकती है।”
भेड़िया शेरू तुरंत ही खुश हो गया और उसकी आँखें चमक उठीं। उसने सोचा कि एक बड़े हिरण का शिकार उसके लिए एक बेहतरीन भोजन साबित होगा। उसने खरगोश की बात मान ली और उसे गुफा का रास्ता दिखाने के लिए कहा। चिंटू ने मन ही मन सोचा, “अब शेरू को उसकी लालच का मजा चखाऊँगा।”
चिंटू भेड़िए को एक पुरानी और सुनसान गुफा की ओर ले गया। वह जानता था कि गुफा में कुछ ऐसा है जो शेरू को धोखा देगा। जब वे गुफा के पास पहुंचे, तो चिंटू ने कहा, “शेरू भाई, आप यहाँ छिपकर बैठ जाएँ। मैं अंदर जाकर देखता हूँ कि हिरण कहाँ है। जब मैं इशारा करूँगा, तब आप तेजी से अंदर आकर उसे पकड़ लेना।”
शेरू ने चिंटू की बात मान ली और गुफा के बाहर छिप गया। चिंटू धीरे-धीरे गुफा में घुस गया और जोर-जोर से बोलने लगा, “अरे बड़ा हिरण, तुम्हारा अंत आ गया है। शेरू भेड़िया तुम्हें खाने के लिए यहाँ आ गया है। तुम अब कहीं नहीं बच सकते।”
गुफा में एक गूंज उत्पन्न हुई, और उस गूंज ने भेड़िए को भ्रमित कर दिया। उसे लगा कि सच में अंदर एक बड़ा हिरण है जो बोल रहा है। शेरू की लालच और भी बढ़ गई, और वह तेजी से गुफा में घुस गया। लेकिन अंदर पहुँचते ही उसने देखा कि वहाँ कोई हिरण नहीं था। अचानक, चिंटू फुर्ती से गुफा से बाहर निकल गया और उसने बड़े पत्थर से गुफा का रास्ता बंद कर दिया।
शेरू गुफा में फंस गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “मुझे बाहर निकालो! मैं यहाँ बंद हो गया हूँ।” लेकिन चिंटू ने उसकी बात अनसुनी कर दी और वहां से हंसते हुए अपने दोस्तों के पास लौट गया।
चिंटू ने अपने दोस्तों को पूरी कहानी सुनाई और सब जानवरों ने हँसी के ठहाके लगाए। शेरू अब उस गुफा में फंसा रह गया और जानवरों को उससे हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया। सभी जानवर चिंटू की समझदारी और चतुराई की तारीफ करने लगे और उसकी बहादुरी की मिसाल देने लगे।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ताकत से ज्यादा महत्व चतुराई का होता है। कभी-कभी मुश्किल परिस्थितियों में बुद्धि का इस्तेमाल ही सबसे अच्छा उपाय होता है।
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