Khargosh aur Kachhua ki kahani | खरगोश और कछुआ की दौड़ | The hare and the Tortoise small story
खरगोश और कछुआ की कहानी – The hare and the Tortoise small story
बहुत समय पहले की बात है., एक घने जंगल में एक तेज-तर्रार खरगोश और एक धीमा चलने वाला लेकिन दृढ़ निश्चयी कछुआ दोनों ही रहते थे.
खरगोश अपने तेज दौड़ने के लिए जंगल मे काफ़ी मशहूर था और अपनी इस खासियत पर वह बहुत गर्व करता था. वह अक्सर कछुए का मजाक भी उड़ाया करता था.
खरगोश कहता था , “कछुआ भाई, तुम तो बहुत धीमे चलते हो. तुम्हें तो किसी भी दौड़ में कोई भी आसानी के साथ हरा सकता है.”
कछुआ बहुत ही शांत स्वभाव का था और उसने कभी भी खरगोश की बातों का बुरा नहीं मानता था.
एक दिन, कछुआ ने सोचा कि क्यों न खरगोश को उसकी गलतफहमी का अहसास कराया जाए.
उसने खरगोश से कहा, “खरगोश भाई, अगर तुम्हें लगता है कि तुम मुझसे तेज हो, तो क्यों न हम दोनों एक दौड़ लगाएं?”
जिससे पता चले की कौन कितनी पानी मे है. और कौन जीत का असली हक़दार है.
तो खरगोश ने हंसते हुए कहा, “तुम मुझसे दौड़ लगाओगे? यह तो बहुत मजेदार होगा। ठीक है, मैं तैयार हूं.”
कहुआ बोला, ” ठीक है फिर हमलोग दौड़ लगते है,
फिर उन्होंने दौड़ लगाने का समय निर्धारित किया और वहा से चले गए. क्योंकि दौड़ का समय कल का तय हुआ था.
कछुए और खरगोश की दौड़ लगाने की बात जंगल मे आग लगने की तरह फ़ैल गई.
अब सभी जानवर को पता चल गया की कॉल कछुआ और खरगोश की दौड़ होने वाली है.
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अगले दिन जंगल के सभी जानवर इस दौड़ को देखने के लिए इकट्ठे हो गए. दौड़ की शुरुआत के लिए एक काफ़ी लंबा रास्ता चुना गया और एक निशान बनाया गया जहां से दौड़ शुरू होगी और एक निशान जहां दौड़ खत्म होगी.
जैसे ही दौड़ शुरू हुई, खरगोश बिजली की तरह तेज दौड़ा और थोड़ी ही देर में कछुए से बहुत आगे निकल गया. पर उसने पीछे देखा कि कछुआ अभी भी बहुत पीछे है,
तो उसने सोचा, “कछुआ तो बहुत धीमा दौड़ता है. क्यों न मैं थोड़ी देर आराम कर लूं और फिर दौड़ खत्म करूँगा “
इसी सोच के साथ खरगोश एक पेड़ के नीचे लेट गया. और आराम करने लगा. धीरे-धीरे उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह सो गया.
कब उसे गहरी नींद आ गई. उसे पता भी नहीं चल पाया.
इस बीच, कछुआ अपने धीमे लेकिन स्थिर कदमों से लगातार चलता रहा. उसने बिना रुके अपनी मंजिल की ओर बढ़ना जारी रखा.
इसी कर्म मे चलने के कुछ समय बाद, कछुआ दौड़ के अंतिम चरण में पहुंच गया.
पर उसने देखा कि खरगोश अभी भी सो रहा है. कछुआ ने सोचा फिर फैसला किया , “मुझे बिना रुके आगे बढ़ना चाहिए” और उसने दौड़ खत्म करने की ओर कदम बढ़ा दिए.
जब खरगोश की नींद खुली, तो उसने देखा कि कछुआ लगभग निर्धारित लक्ष्य रेखा पर पहुंच चुका है.
वह तेजी से दौड़ा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
कछुआ ने दौड़ पूरी कर ली थी और सभी जानवर उसकी जीत का जश्न मना रहे थे.
खरगोश ने कछुए से माफी मांगते हुए कहा, “कछुआ भाई, मुझे माफ कर दो. मैंने तुम्हें कम आंका और अपनी ही घमंड में हार गया.
तुमने मुझे सिखाया कि लगातार मेहनत और धैर्य से हम किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं.”
कछुआ ने मुस्कुराते हुए कहा, “खरगोश भाई, कोई बात नहीं. हम सभी को अपनी गलतियों से कुछ सीखना चाहिए. अब हम दोनों मिलकर इस जंगल को एक बेहतर जगह बनाएंगे.”
उस दिन के बाद से, खरगोश और कछुआ अच्छे दोस्त बन गए और दोनों ने एक-दूसरे की मदद से अपने जीवन को और भी बेहतर बनाया.
उनकी कहानी जंगल के सभी जानवरों के लिए एक प्रेणात्म बन गई.
कहानी की सीख
धैर्य, साहस और दृढ़ संकल्प से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है। जल्दबाजी और घमंड कभी-कभी हमें हमारी मंजिल से दूर कर सकते हैं।